कृष्णमूर्ति पद्धति । K.P Astrology - Gvat Gyan

आओ कुछ नया सीखते है...

कृष्णमूर्ति पद्धति । K.P Astrology


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श्री कृष्णमूर्ति जी 
कृष्णमूर्ति ज्योतिष पद्धति की खोज का श्रेय दक्षिण भारत के श्री कृष्णमूर्ति जी को जाता है। इस पद्धति को संक्षेप में  K.P Astrology भी कहते है। कृष्णमूर्ति जी ने वैदिक ओर पाश्चात्य ज्योतिष का अध्यन किया ओर पाया कि परम्परागत या प्रचलित ज्योतिष के माध्यम से किसी घटना के फलित होने के समय का सटीक निर्धारण करना संभव नहीं है। लेखको की बातों में मतभेद होना भी इसका प्रमुख कारण था,  इसके अतिरिक्त ज्योतिष के लाखों हजारो श्लोको का याद कारण भी सामान्य जन के लिए सरल नहीं है।

इस समस्या को सुलझाने के लिए श्री कृष्णमूर्ति जी ने वैदिक ओर पाश्चात्य ज्योतिष का गहन अध्यन करके उसमे अपने कुछ नवीन शोध का समावेश कर दिया ओर प्राप्त निष्कर्ष को कृष्णमूर्ति पद्धति का नाम दिया।

परंपरागत ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते है, परंतु केपी जी ने हर नक्षत्र को भी 9 भाग में विभाजन कर दिया। जिसे उन्होने उप-नक्षत्र का नाम दिया। इसी उपनक्षत्र के कारण ही K.P Astrology अन्य परंपरागत ज्योतिष से अधिक सटीक है- इसके माध्यम से बिजली कब आएगीट्रेन कब आएगीबारिश कब रुकेगी आदि प्रश्नो का भी जवाब दिया सा सकता है। जो परंपरागत ज्योतिष से संभव नहीं है।

इस पद्धति को सीखने ओर प्रयोग में लाना भी आसान हैक्योंकि इसमे पारंपरिक ज्योतिष के समान हजारो हजार योग नहीं है। इसे साधारण मनुष्य भी थोड़े से प्रयास से सीख सकता है इसलिए K.P astrology को  21 वी सदी के ज्योतिषियों के लिए बहुत कारगर माना जाता है। तो आइये इस विध्या को सीखकर अपना और अपनों का भविष्य सवारते है, लेकिन इसके पूर्व इस पद्धति के जनक श्री कृष्णमूर्ति जी के जीवन को संक्षेप में जान लेते है।  


श्री कृष्ण मूर्ति जी का संक्षेप परिचय ( K.S krishnamurti short biography )

श्री कृष्णमूर्ति का जन्म 1.11.1908 को तमिलनाडू राज्य के थिरुवैयारू (Thiruvaiyaru) में हुआ था। श्री कृष्णमूर्ति जी ने तिरु चिरापल्ली के सेंट जोसेफ कालेज से अपनी शिक्षा प्राप्त कर सन 1927 को तमिलनाडू सरकार के स्वास्थय विभाग (Public health Department) में पद संभाला। परंतु ईश्वर तो उनसे कुछ और ही करना चाहते थे।

कृष्ण मूर्ति जी ने भारतीय और पाश्चात्य दोनों ज्योतिष का गहनता से अध्यन किया और जो काल चक्र के कारण ज्योतिष में त्रुटि आ गयी थी उसे समझकर ज्योतिष के कुछ नए आयाम निकाले। ज्योतिष में और गहनत से उतारने के लिए कृष्णमूर्ति जी ने सन 19671 को स्वैच्छिक सेवा से निवृति लेकर अपना जीवन पूर्णतः ज्योतिष को समर्पित कर दिया।

कृष्ण मूर्ति जी ने अपने अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्ष को समझाने के लिए 1963 में एस्ट्रोलोजी एवं अथरिष्ट मासिक पत्रिका (Astrology and Adrishta magazine) निकाली और भारत के विभिन्न क्षेत्र में ज्योतिष अन्वेषण और अनुसंधान केंद्र की भी स्थापन की। इसके अतिरिक उन्होने केपी ज्योतिष को 6 पुस्तकों के रूप में भी प्रकाशित किया।

  • KP Reader 1: Casting the Horoscop
  • KP Reader 2: Fundamental ofAastrology Kp Reader
  • KP Reader 3: Predictive stellar Astrology
  • Kp Reader 4: Marriage Married and Children
  • KP Reader 5  Transits Gocharphala Nirnayam    
  • KP Reader 6: Horary astrology


कृष्णमूर्ति जी की अपनी सभी पुस्तके इंग्लिश भाषा में प्रकाशित की थी। जिस कारण ज्योतिषियों का एक बड़ा वर्ग वर्षों तक KP ज्योतिष को समझने में असमर्थ रहा था। अब कृष्णमूर्ति ज्योतिष की पुस्तके हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषा में भी उपलब्ध है। कलयुग के ऋषि श्री कृष्णमूर्ति जी का निधन 29 मार्च सन 1972 को हुआ।