नाड़ी परीक्षण । Pulse Diagnosis - Gvat Gyan

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नाड़ी परीक्षण । Pulse Diagnosis

Ayurvedic Pulse Diagnosis



















नाड़ी  परीक्षण (Pulse Diagnosis)


आज के युग में रोग परीक्षण करने के लिए अनेक साधन उपलब्ध है, जैसे हड्डी टूटने संबंधी की जांच के लिए X-Ray, बुखार नापने के लिए Thermometer, रक्त की जांच विभिन्न प्रकार के blood test आदि। लेकिन पुराने समय में जब यह मशीने नहीं थी। 
तब रोगी की परीक्षा कैसे हुआ करते होंगे? हमारे ऋषि मुनियों रोग परीक्षण के विषय में क्या कार्य किया है? आयुर्वेद में रोग परीक्षण के क्या क्या साधन रहते होंगे? ऐसे ही ढेरों प्रश्न आपके आपके मस्तिष्क में भी अवश्य आते होंगे। आज के इस लेख में हम कुछ ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर तलासने का प्रयत्न करेंगे-  

आयुर्वेद के अनुसार रोग परीक्षण के मुख्य रूप से 8 (नाड़ी, मल, मूत्र, जिव्हा , शब्द, स्पर्श, नेत्र और आक्रति) विधान होते है। जिसमे नाड़ी परीक्षण यानि Pulse diagnosis को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
         

नाड़ी परीक्षण क्या है ? (What is nadi parikshan)

पुराने समय में आयुर्वेद चिकित्सक के पास जाकर मरीज को अपने रोग के बारे में कुछ बताने की कोई अवश्यकता नहीं पड़ती थी। नाड़ी विशेषज्ञ मरीज की कलाई को पकड़ने मात्र से रोग को जान लेता था और बता देता था आपको यह समस्या हैइसी चमत्कारी विध्या का नाम नाड़ी परीक्षण है, इसे अँग्रेजी में pulse diagnosis  नाम से जाना जाता है।

नाड़ी परीक्षण का प्रयोग आयुर्वेद के अतिरिक्त अन्य प्राचीन चिकित्सा पद्धति में किया जाता रहा है। (Pulse diagnosis is a diagnostic technique used in Ayurveda, Siddha medicine, Traditional Chinese medicine, Tibetan medicine, Unani Medicine and Mongolian medicine etc)

दुर्भाग्य वश आज ये ज्ञान पुरानी पुस्तकों के निर्जीव प्रष्ठ में ही देखने को मिलता है। जो नाड़ी परीक्षण का थोडा बहुत ज्ञान रखते है, वो इस ज्ञान को अपने सगे संबंधी के अतिरिक्त किसी को देना नहीं चाहते या अगर देना भी चाहते है तो इस जटिल विषय क असाहस नहीं करते।

फलस्वरूप आज अच्छे नाड़ी वैध को मात्र उँगलियों पर गिना जा सकता। जब कोई विध्या कुछ सीमित लोगों तक ही रह जाती है, तो उसे संदेह की दृष्टि से भी देखा जाना लगता है, ऐसा ही नाड़ी विज्ञान के विषय में भी हो रहा है। 

नाड़ी परीक्षण को लेकर आजकल का बुद्धि जीवी वर्ग विश्वास ही नहीं करता। ऋषि मुनि के दिये गए दिव्य ज्ञान को छल करार दिया जाता है। हम अपने पूर्वजो के तप  को सजोके भी न रख सके इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है

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