स्वर शास्त्र । Shiva Swarodaya shastra - Gvat Gyan

आओ कुछ नया सीखते है...

स्वर शास्त्र । Shiva Swarodaya shastra

Shiva Swarodaya shastra

स्वर शास्त्र  के रचयिता स्वयं भगवान शिव (Loard shiva) है, स्वर ज्ञान से बढ़कर कोई अन्य ज्ञान नहीं है, इससे वह सारे कार्य सिद्ध किए जा सकते है जो मंत्र, तंत्रज्योतिष, ध्यान आदि से भी नहीं किए जा सकते। स्वर ज्ञान से इन्द्र तुल्य शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है, यहा तक की मृत्यु को भी टाला जा सकता है। ऐसा शास्त्रो का मत है।


स्वर शास्त्र का सक्षेप्त परिचय

हमारे जीवन में श्वास अर्थात Breath की क्या उपयोगिता है? इससे आप भली प्रकार से परिचित होंगे। श्वास के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

1. हमारे नाक में दों छिद्र यानि Hole होते है, जिसके माध्यम से हम श्वास लेते है इन दोनों छिद्रो के मध्य एक हड्डी भी स्थित होती है, जो दोनों का विभाजन करती है।

2. सामान्य अवस्था में नाक के एक ही छिद्र से श्वास अर्थात हवा का आवागमन होता है अर्थात कभी दाया तो कभी बाया। इसके अतिरिक्त कुछ समय के लिए दोनों छिद्रों से एक साथ भी श्वास चलती है, इसे मध्यावस्था कहते है। यह अवस्था तब आती है, जब श्वास में परिवर्तन होता है।
          
  

तीन प्रधान नाड़ी (इंगला, पिंगला और सुषुमना)

 स्वर शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में इंगला, पिंगला और सुषुमना तीन प्रधान नाड़ी होती है। जब बाए नासिका से वायु का आवागमन होता है, यो शरीर में इडा नाड़ी में वायु का प्रवाह होता है, इसी प्रकार जब दाहिने नासिका से श्वास का आवागमन होतो वायु का प्रवाह पिंगला नाड़ी में होता है।

इसके अतिरिक्त श्वास परिवर्तन अर्थात इडा से पिंगला या पिंगला से इडा के परिवर्तन के समय कुछ देर  के लिए दोनों नासिका में एक साथ भी श्वास का आवागमन होता है। इस अवस्था में शरीर में सुषुमना नाड़ी में वायु का प्रवाह होता है।

  स्वर शास्त्र के अनुसार मात्र श्वास को अपने अनुकूल चलाकर ही सारे कार्य सिद्ध किए जा सकते है। स्वर शस्त्र के ज्ञाता को किसी को कार्य प्रारम्भ करने के लिए शुभ तिथि,  नक्षत्र,  दिन,  ग्रह देवता, भद्रा और योग आदि के विचार करने भी की आवश्यकता नहीं होती। मात्र कार्य के अनुकूल स्वर (श्वासचलाकर कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है। आज के लेख में बस इतना ही। 
अगला भाग शीघ्र ही....

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