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पूजन कार्य में शंख का अपना महत्व है। लगभग सभी
देवी देवता की पुजा में शंख से जल चढ़ाया जाता है, लेकिन शिव पूजन में शंख से जल चढ़ाना निषेध माना गया है। इसके पीछे क्या कारण है? हम आजके इस लेख में जानने का प्रयत्न करेंगे।
शिवलिंग में शंख से जल चढ़ाना निषेध क्यों?
इस विषय में शिवपुराण
में एक कथा वर्णित है। शिव पुराण के अनुसार दैत्यराज दंभ को जब कोई पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। तो उन्होने
भगवान विष्णु की तपस्या कर तीनों लोको में
अजय पुत्र प्राप्ति
का वरदान प्राप्त कर लिया।
इस
वर के फलस्वरूप दंभ को “शंखचूड” नामक महापराक्रमी पुत्र की प्राप्ति हुयी। शंखचूड ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव नें उन्हे देवताओं में अजेय होने का वरदान दे दिया और
धर्मध्वज की पुत्री तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा जी की आज्ञा से
तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हो गया। तुलसी एक पतिव्रता
स्त्री थी।
शंखचूड
ने ब्रह्मा और विष्णु से प्राप्त वर के प्रभाव
से तीनों लोको मे अपना अधिकार स्थापित कर लिया। श्री विष्णु कवच और तुलसी के पतिव्रता
धर्म के कारण शिवजी भी शंखचूड का वध नहीं कर
सकते थे। तब विष्णु ने ब्राह्मण बनकर शंखचूड से श्री विष्णु कवच दान में मांगा और चिष्णु भगवान ने शंखचूड का
रूप धरण कर तुलसी शील का हरण कर लिया और महादेव ने शंखचूड का अपने त्रिशूल से भस्म
कर कर दिया। ऐसा
माना जाता है कि शंखचूड़ की राख से ही शंख का जन्म
हुआ है।
चूंकि शंखचूड विष्णु
भक्त था अतः विष्णु और लक्ष्मी को शंख का जल अति प्रिय है। और लगभग सभी देवताओं को
शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने शंखचूड़ का वध किया था अतः शंख का जल को
निषेध बतया गया है।
लेखन के इतिहास में पहली बार (जरूर पढ़ें):-
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