सामुद्रिक शास्त्र का इतिहास । The History of palmistry - Gvat Gyan

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सामुद्रिक शास्त्र का इतिहास । The History of palmistry


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सामुद्रिक शास्त्र का इतिहास (The History of palmistry)


सामुद्रिक शास्त्र का इतिहास (The history of palmistry) जैसा की हम सब जानते है, कोई भी विध्या रातो रात विकसित नहीं होती। उसकी उत्पत्ति और विकास के पीछे हजारों कहानी और विद्वानों का तप होता है। हम आज के इस लेख में हस्त रेखा की उत्पत्ति और विकास से जुड़े कहानी और मान्यता को जानने का प्रयत्न करेंगे-

हस्त रेखा एक प्राचीन भारतीय ज्ञान:-


Hand Line is An Ancient Indian knowledge- हस्त रेखा के विषय में कुछ विदेशी विद्वानों का मानना है, कि इसका आरंभ ईसा से लगभग 3000 वर्ष पूर्व चीन में हुआ था, लेकिन यह सत्य नहीं है। हस्त रेखा का इतिहास इससे कई अधिक पुराना हैभारत के मनीषियों को हस्त रेखा का ज्ञान रोम और यूनान की स्थापना से भी पूर्व था, और भारत से ही यह ज्ञान चीन होता हुआ तिब्बत, रोम, जापान आदि देशों में फैलता चला गया।

वर्तमान में इसे हस्त रेखा नाम से जाना जाता है, लेकिन प्राचीन काल में इस विध्या का नाम सामुद्रिक शास्त्र” था। हिन्दू के वेद पुराणों (Hindu Religious book) में भी हथेली पर पायें जाने वाले चिन्हों का कई स्थान में जिक्र आता है। और वेद को विश्व की सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। 
  
प्राचीन पुस्तकों से इस बात के संकेत मिलते है कि उस समय यह विध्या काफी विकसित अवस्था रही होगी। क्योंकि सामुद्रिक शास्त्र के अंतर्गत व्यक्ति के पांव के तलवे से लेकर सिर के बाल तक का आधार मानकर फल कथन किया जाता था। जिनमे हथेली को प्रधानता दी जाती थी।


वेद, पुराणों में सामुद्रिक शास्त्र:-


Hand Line in Vedas, puranas- भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है और वेद विश्व का सर्वाधिक पुराना ग्रंथ है यह बात विश्व भर के वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। हिन्दू धर्म के चार वेद में से एक वेद जिसका नाम अर्थर्वेद है उसमे हस्त के बारे में निम्न श्लोक आता है-

            कृतं दक्षिणा-हस्ते, जया में सव्य आहितहः।  (अथर्वेद)

अर्थात- मेरे दायें हाथ में (पुरुषार्थ) वर्तमान और बायें हाथ में विजय (भूतकाल) है।

तात्पर्य यह है, कि व्यक्ति जो भाग्य में लाया है उसके परणाम बाए हाथ में मोलेगा और जो व्यक्ति व्रतमान में कर्म करेगा उसका संकेत दाहिने हाथ में मिलेगा।

वाल्मीकि रामायण में भी कई स्थान पर शरीर लक्षण का जिक्र आता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह काल त्रेता युग यानि आज से 120000 वर्ष पूर्व का है। 
     
एक अन्य हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार- पर्वत राज हिमाली की पुत्री गिरजा के विवाह योग्य होने पर उनकी माता मैना सुयोग्य वर की तलाश में थी। तभी "महर्षि नारद" प्रकट होते है और गिरजा के हाथ देखर कहते है, तुम्हारा पति योगी होगा। जो भगवान “शिव थे।    

हमने यहा आपके सामने हस्त रेखा की प्राचीनता की प्रमाणिकता को सिद्ध करने वाले कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए है। जिससे यह साफ स्पष्ट होता है, कि विदेशी विद्वानों ने हस्त रेखा के इतिहास को जितना प्राचीन समझा है, यह उससे कही अधिक पुराना है। अब हम आपको हस्त रेखा की उत्पत्ति से जुड़े हिन्दू मान्यता बताते है, जिसके प्रमाण विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में मिलते है। 


सामुद्रिक शास्त्र की उत्पती की कथा:-


सामुद्रिक शास्त्र या हस्त रेखा की उत्पत्ति को लेकर विदेशी विद्वानों ने बहुत सारे भ्रम फैला रखे है। जिसे आपने ऊपर विस्तार से जाना है। अब हम आपको हस्त रेखा की उत्पत्ति की कहानी बताती है।  
हिन्दू मान्यता के अनुसार- सामुद्रिक शास्त्र की रचना शिव जी की प्रेरणा से “कार्तिकेय” ने की थी, गणेश ने इस विशाल ग्रंथ को समुन्द्र में फेक दिया था। फिर भगवान शिव के कहने पर समुन्द्र देव ने इस विशाल ग्रंथ को वापस लोटा दिया। समुन्द्र में फेंक ने के कारण इसका नाम सामुद्रिक शास्त्र पड़ा। इस कथा के घटने का समय दृढ़ता पूर्वक नहीं कहा जा सकता।

एक अन्य मान्यता के अनुसार- “समुन्द्र ऋषि ने इस शास्त्र को पुष्पित और क्रमबद्ध किया जिस कारण यह सामुद्रिक ज्योतिष के नाम से प्रसिद्ध हुआ।” निम्न श्लोक देखें- 

            तदापि नारद लक्षक वरहमाण्डव्य षण्मुख प्रमुखैहः।
            रचिततं कवचितप्रसंगात्पुरुष-स्त्री लक्षणं किंचित्॥
            श्री भोज नृप सुमन्तप्रभृति नांगरतोंपि विधंते ।
            सामुद्रिक शस्त्रादी शस्त्रणि प्रायः गहनानि तानि परमम्॥ 

समुन्द्र ऋषि के पश्चात नारद (नारद पुराण के रचियता), वराह, माण्डव्य, षण्मुख, राजा भोज सुमन्त आदि तक यह ज्ञान पहुंचा। नारदपुराण के ग्रंथ की रचना का समय ईसा से 600 वर्ष पूर्व माना जाता है, नारद पुराण में ज्योतिष और सामुद्रिक शास्त्र का जिक्र कई बार आता है। 


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