विदेशो में हस्त रेखा का प्रसार
हस्त रेखा के विषय में कुछ विद्वानों का मानना है, कि इसका आरंभ ईसा से लगभग 3000 वर्ष पूर्व पूर्व हुआ होगा। लेकिन इसका
इतिहास इससे कही अधिक पुराना है। इस बात के संकेत वेद पुराणों में मिलते है। पुराने
समय में हस्त रेखा को सामुद्रिक शास्त्र नाम से जाना जाता था। सामुद्रिक शास्त्र भारत से होता हुआ
चीन, तिब्बत, रोम, जापान आदि देशों में फैलता हुआ वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व भर में प्रचलित
हो
चुका है।
देश
विदेश के शिक्षण संस्थानों में हस्त रेखा का अध्यन किया जाने लगा है। लेकिन यह सब कसिए हुआ? कैसे पाश्चात्य जगत ने इस भारत के इस
ज्ञान को स्वीकार किया? आज के इस लेख में हम कुछ ऐसे ही प्रश्नों
के उत्तर तलाशने का प्रयत्न करेंगे।
सामुद्रिक शास्त्र सर्वप्रथम भारत से होता हुआ अपने पड़ोसी
देश चीन पहुंचा। चीन
के पश्चात यह तिब्बत, जापान आदि देश में फैलता चला गया। यह सभी
देश बौद्ध धर्म प्रधान देश थे। भारत के भगवान बुध की जन्म और तप स्थली होने के कारण भारत से इन देशों का विशेष
संबंध था। जिस कारण हस्त रेखा को इन देशों में फैलने के लिए अनुकुल वातावरण मिल गया।
इन देशों ने देश-काल परिस्थिति के अनुसार सामुद्रिक शास्त्र
में मूलभूत परिवर्तन
भी किए। फल स्वरूप चीन, जापान आदि देश में हस्त देखा द्वारा फल कथन
करने का तरीका भारत से से थोड़ा भिन्न था, जिस कारण हस्त रेखा के विद्वानों
ने कुछ देशों के हस्त रेखा को उनके देश के नाम से पुकारना शुरू कर दिया जैसे Chinese palmistry, Indian palmistry आदि।
बोद्ध देशों के पश्चात यह ज्ञान पाश्चात्य देशों के लोगों का ध्यान
अपनी और आकर्षित करने लगा। वह हाथ की रेखा से भविष्य बताने की कला को देखकर दंग थे।उन्होने
भी इस ज्ञान को सीखना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार हस्त रेखा का चलन विदेशों में बड़ता
चला गया। अब हम आपके सामने पाश्चात्य जगत से जुड़ी कहानियों का संक्षेप में परिचय दे
रहे है। जिनके बारे में विभिन्न पुस्तकों में वर्णन मिलता है-
15 वी शताब्दी में जर्मनी में एग्रिप्पा नाम के एक प्रसिद्ध हस्त रेखा शास्त्री हुये,
जो अपनी भविष्यवाणी के लिए प्रसिद्ध थे,
जर्मनी में हस्त रेखा के प्रचार का श्रेय एग्रिप्पा को ही दिया जाता है।
15 सदी में इटली के प्रसिद्ध हस्त रेखा
विशेषज्ञ कोकलेस बार्थोलोमस ने भी खूब ख्याति अर्जित की थी।
इन्हे हस्त रेखा में कांति लाने का श्रेय दिया जाता जाता है। इनकी लोकप्रियता का
अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है,
कि इनकी पुस्तकों को लैटिन, फ्रैंच,
जर्मनी
आदि कई भाषाओं में अनुवाद किया गया था।
अब हस्त रेखा कई देशों में अपने पाँव पसार चुकी थी। समय के साथ साथ
हस्त रेखा से भविषय कथन के तरीकों में परिवर्तन आने लगा था। अब यह भारतीय सामुद्रिक
शास्त्र से सर्वथा भिन्न हो चुका था। इसे सामुद्रिक शास्त्र से अलग कर (सम्पूर्ण शरीर
के स्थान पर मात्र हथली को देखना) अध्यन किया जाने लगा था।
हस्त रेखा के लिए 18 सदी को स्वर्णिम
कल माना जाता है। इस वक्त तक हस्त रेखा आपने पाँव सम्पूर्ण विश्व में पसार चुका
था। कई बड़े पत्रिकाओं में
हस्त रेखा संबन्धित लेख छपने लगे थे। इस काल
में जॉन अल्बर्ट, बुल्वर, एनोनेमस, जेरमीन, बेनहम, कीरो आदि विद्वानों ने विशेष ख्याति
अर्जित की थी। हमे वर्तमान में जो हस्त रेखा का स्वरूप देखने
को मिलता है इंहि विद्वानों
की देन है।
हस्त रेखा पर प्रतिबंध
Restriction on palmistry- 18 शताब्दी में ऐसा दौर भी आया जब यूरोप में हस्त रेखा को काला जादू और भूत प्रेत उपासक की विध्या बताकर
बहिस्कार किया जाने लगा। उस समय एक “ऐन्टी पामिस्ट्री बिल” भी पास
किया गया, जिसमें हस्त रेखा का अभ्यास करने वाले को
एक वर्ष तक की सजा का प्रावधान था।
सुप्रसिद्ध हस्त रेखा शास्त्री “कीरों” अपनी
पुस्तक में लिखते है- “लंदन में एक परिवार को सिर्फ इसलिए धार्मिक रस्म करने से इंकार कर दिया गया क्योंकि वह उनके पास सलाह
लेने आए थे।”
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