हम सब जानते है, जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते है। प्रत्येक भाव को विभिन्न नाम से पुकारा
जाता है और उनसे भिन भिन चीजों को
विचार किया जाता है। आज के इस लेख में हम भाव के कारक तत्व अर्थात किस भाव से किस
चीज का विचार किया जाता है, इस विषय में जानकारी
प्राप्त करेंगे। इसे ध्यान से समझे
क्योंकि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. प्रथम भाव (First House)
इसे लग्न या तनु भाव भी कहते है, इस स्थान से व्यक्ति का स्वभाव, उसके शरीर की बनावट, दुर्बलता या पुष्टता, जीवन स्तर आदि का विचार किया जाता है। शरीर में इसका स्थान मस्तिष्क है।
Tips- यदि प्रथम भाव बली नहीं है तो अन्य भाव के बलशाली होने पर भी जीवन भर शुभ फल नहीं मिलेगा, सिर्फ उस भाव से संबन्धित दशा अंतर्दशा दशा में ही आशा की जा सकती है।
2. द्वितीय भाव (Second House)
इसे धन भाव भी कहते है, इससे धन, संपति, कुटुंभ आदि का विचार
किया जाता है। व्यक्ति की लेखन या वाणी का विचार भी इसी भाव से
करते है। इसका प्रभाव कंठ नेत्र और मुख पर होता है।
Tips- शरीर में द्वितीय भाव दायी आँख का प्रतिनिधित्य करता है। अतः द्वितीय भाव में पाप प्रभाव होने पर कमजोर या कम उम्र में चश्मा लग सकता है। ज्यादा ही कुप्रभाव हो तो आँख नष्ट भी हो सकती है।
3. तृतीय भाव (Third House)
इसे भ्रात या पराक्रम भाव भी कहते है।
इससे साहस प्राकरम, भाई बहन छोटी यात्रा आदि
का विचार किया जाता है। शरीर के अंगों में यह कान, हाथ कंधे का प्रतिनिधित्व करता है।
4. चतुर्थ भाव (Forth House)
इसे मातृ स्थान भी कहते है इससे माता का
सुख, संपत्ति, घर, वाहन आदि का विचार किया जाता है। शरीर में इसका स्थान छाती और पेट होता है।
5. पंचम भाव (Fifth House)
इसे संतान भाव भी कहते है, इससे संतान, विध्या, बुद्धि, लाटरी आदि का विचार किया जाता है। शरीर में इसका स्थान हृदय, पीठ है।
Tips- स्त्री जातक के लिए पंचम भाव अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पंचम भाव में अशुभ प्रभाव होने से प्रसव कष्ट पूर्वक होगा, यदि प्रतिकूलता अधिक होतो संतान की गर्भ में मृत्यु आदि भी हो सकती है। उदाहरण के लिए मान लीजिये किसी स्त्री की कुंडली में पंचम भाव में मंगल है। मंगल पाप ग्रह है और रक्त का प्रतिनिध्तिव भी करता है अतः सम्भव है कि प्रसव शलय चिकित्सा से हो।
6. षष्ठ भाव (Sixth house)
इसे रोग भाव भी कहते
है। इससे रोग शत्रु, अपमान, घाव, मामा आदि का विचार किया जाता है। शरीर
में इसका स्थान कमर, नाभि आंत और पेट
होता है।
7. सप्तम भाव (Seventh house)
इसे पत्नी भाव भी
कहते है, इससे स्त्री सुख, विवाह, व्यापार आदि का विचार किया जाता है। शरीर में इसका
स्थान वस्ती, मूत्र पिंड और कमर होता है।
Tips- सप्तम भाव सहयोग और भौतिक सम्बन्धों का भाव है इसलिए चाहे वह वैवाहिक संबंध हो या व्यापारिक इसी भाव से विचार किया जाएगा।
8. अष्टम भाव (Eight House)
इसे मृत्यु स्थान भी कहते है, इससे मृत्यु की स्थिति का पता लगाया जाता है। मृत्यु किस प्रकार होगी
स्वाभाविक या अकाल, सरल या कष्टपूर्ण,
आदि का विचार अष्टम भाव सी ही किया जाता है। शरीर के अंगों में गुदा की स्थिति
अष्टम भाव से प्रदशित होती है। उदाहरण- यदि अष्टम भाव में मंगल होतो जातक को
बवासीर की समस्या हो सकती है।
Tips- किसी
भी भाव से उसका
12 भाव (उस भाव को
लग्न मानकर आगे की और गिनने पर)
अर्थात उससे ठीक
पूर्व का भाव उस भाव का व्यय भाव होता है। अष्टम भाव का 12 भाव सप्तम भाव हुआ आयु का व्यय ही मृत्यु होती है,
इसलिए सप्तम भाव मारक स्थान हुआ। इस
बारे विस्तार
से चर्चा आयु निर्णय के समय दी जाएगी।
9. नवाम भाव (Ninth House)
इसे धर्म स्थान भी कहते है। इससे धर्म के
प्रति श्रद्धा, देव आराधना आदि धार्मिक चीजों का विचार किया जाता है। लंबी या दूर देश की यात्रा का विचार भी किया जाता है। इसका प्रभाव
जांघ पर होता है।
10. दशम भाव (Tenth House)
इसे कर्म स्थान भी कहते है।
इससे इससे नौकरी, विदेश गमन, पिता सुख आदि का विचार किया जाता है। इसका पराभव घुटनों परहोता है।
11. एकादश (Eleventh house)
इसे आय या लाभ स्थान
कहते है, इससे आय और विभिन्न प्रकार के लाभ का विचार किया जाता है। शरीर में यह पिंडली का प्रतिनिधित्व करता है।
12. द्वादश स्थान (Twelfth house)
इसे व्यय स्थान भी कहते है। धन का व्यय, शयन स्थान, बंधन, दरिद्रता, मोक्ष आदि का विचार 12 भाव से ही किया
जाता है। पूर्व में बताया जा चुका है कि एकादश भाव से हमे आय का पता चलता है लेकिन
द्वादश से व्यय (खर्च) का अतः एकादश एवं द्वादश भाव एक दूसरे के पूरक है।
Tips -यदि द्वादश भाव खराब स्थिति में होगा तो खर्च अधिक होगा फलस्वरूप जातक ऋणी भी हो सकता है। धन का व्यय धर्मार्थ काय में होगा, या सरकारी जुर्माना आदि में, इसका पता भी द्वादश भाव से चलता है। द्वादश भाव का अध्यन करके यह भली प्रकार से जाना जा सकता है कि जातक जो धन खर्च करेगा वह शुभ कार्य के लिए होगा या अशुभ।
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